लेखक:
भैरवप्रसाद गुप्त
जन्म : 7 जुलाई 1918 को सिवानकलाँ गाँव (बलिया, उ.प्र.)। शिक्षा : इविंग कॉलेज, इलाहाबाद से स्नातक। अपने शिक्षक की प्रेरणा से कहानी लेखन की ओर रुझान हुआ। जगदीशचन्द्र माथुर, शिवदान सिंह चौहान जैसे लेखकों एवं आलोचकों के सम्पर्क और साहित्यक-राजनीतिक परिवेश में उनके रचनात्मक संस्कारों को दिशा मिली। सन् 1940 में मजदूर नेताओं से सम्पर्क। सन् 1944 में माया प्रेस, इलाहाबाद है जुड़े। अपने अन्य समकालीनों की तरह आर्य समाज और गाँधीवादी राजनीति की राह से बामपंथी राजनीति की ओर आये। सन् 1948 में वे कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने। प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें : उपन्यास-शोले, मशाल, गंगा मैया, जंजीरें और नया आदमी, सत्ती मैया का चौरा, धरती, आशा, कालिन्दी, रम्भा, अंतिम अध्याय, नौजवान, एक जीनियस की प्रेमकथा, भाग्य देवता, अक्षरों के आगे (मास्टर जी) , ‘छोटी-सी शुरुआत, कहानी संग्रह-मुहब्बत्त की राहें, फरिश्ता, बिगडे हुए दिमाग, इंसान, सितार के तार, बलिदान की कहानियाँ, मंजिल, महफिल, सपने का अंत, आँखों का सवाल, मंगली की टिकुली, आप क्या कर रहे हैं ? नाटक और एकांकी-कसौटी, चंदबरदाई, राजा का बाण। सम्पादित पत्रिकाएँ-माया, मनोहर कहानियाँ, कहानी, उपन्यास, नई कहानियाँ, समारंभ-1, प्रारंभ। निधन : 5 अप्रैल, 1995 |
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अक्षरों के आगे (मास्टर जी)भैरवप्रसाद गुप्त
मूल्य: $ 6.95 अन्धविश्वासों,कुप्रथाओं पर आधारित उपन्यास.... आगे... |
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आशा कालिन्दी और रम्भाभैरवप्रसाद गुप्त
मूल्य: $ 18.95 आशा कालिन्दी और रम्भा.... आगे... |
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आशा, कालिन्दी और रम्भाभैरवप्रसाद गुप्त
मूल्य: $ 24.95 आशा-कालिंदी और रम्भा नामक उपन्यासों की त्रयी क्रमशः सामंतवादी, पूंजीवादी और गांधीवादी व्यवस्था में स्त्री की स्थिति पर एक टिप्पणी है आगे... |
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गंगा मैयाभैरवप्रसाद गुप्त
मूल्य: $ 7.95 प्रस्तुत पुस्तक 'गंगा मैया में भारतीय ग्रामीण जीवन-संघर्ष का जो सहज, स्वाभाविक और वास्तविक अंकन हुआ है बह अन्यत्र दुर्लभ है आगे... |
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छोटी सी शुरुआतभैरवप्रसाद गुप्त
मूल्य: $ 24.95 भैरवप्रसाद गुप्त का प्रस्तुत उपन्यास उनकी रचनात्मक दृष्टि और अवधारणाओं में आये परिवर्तनों का एक ऐसा विशिष्ट आईना है जिसमें 'अक्षरों से आगे' के सृजनात्मक विश्वासों की आधार-भूमि का विस्तुत फलक रूपायित होकर, प्रत्यक्ष हुआ है आगे... |
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बाँदीभैरवप्रसाद गुप्त
मूल्य: $ 12.95 |
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सती मैया का चौराभैरवप्रसाद गुप्त
मूल्य: $ 19.95 सती मैया का चौरा भैरवप्रसाद गुप्त का ही नहीं समूचे हिन्दी उपन्यास में एक उल्लेखनीय रचना के रूप में समादृत रहा है आगे... |